हर रोज़ का ये तेरा ये रोना भी नहीं होता.
आँखों को तो अश्को से भिगोना भी नहीं होता.
अब दर्द के बिस्तर पे, लग जाय हैं ये आँखें
,
फूलों का सभी को तो, बिछौना भी नहीं होता.
तुम हमको समझ लेते, हम तुमको समझ लेते,
इक दूजे को दोनों का खोना भी नहीं होता.
बच्चों की तरह दिल ये, अब खुद ही बहल जाये,
हाथों में तो हर इक
के, खिलौना भी नहीं होता.
सूरत से अगर तेरी सीरत का पता चलता,
जीवन में ग़मों का ये ढोना भी नहीं होता.
डॉ. सुभाष भदौरिया ता.08-01-2017 गुजरात
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