ग़ज़ल
वो तो उलझ के रह गये योगी की चाल पे.
हमतो रिसर्च कर रहे हैं रोटी दाल पे.
दुश्मन से आर पार का कब होगा फैसला,
आँखें वो मूदे बैठे हैं मेरे सवाल पे.
आँखें वतन को रोज़ दिखाये हैं देख लो
चिंता की रेखा खिच गयी हैं सब के भाल
पे.
तुम रोओ गाओ या सभी अब जाओ भाड़ में,
कुछ होने वाला है नहीं उस मोटी खाल पें.
इस रौशनी में अपनी तो आँखें चली गयीं,
ताली बजा रहे हैं सब उनके कमाल पे.
सूखे पड़े हुए थे कोई पूछता न था,
बारिश हुई तो आ गये नाले उछाल पे.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.10-08-2017
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