ग़ज़ल
सोचे समझे बिना मुझको क्या लिख दिया.
उसने ख़त में मुझे बेवफ़ा लिख दिया.
ढूँढ़ लो दूसरी अपने जैसी कोई,
कितना दिलचस्प ये मश्वरा लिख दिया.
उसने ख़त में मुझे बेवफ़ा लिख दिया.
ढूँढ़ लो दूसरी अपने जैसी कोई,
कितना दिलचस्प ये मश्वरा लिख दिया.
उसकी गुस्ताख़ियों को लगाया
गले,
ज़हर का नाम हमने दवा लिख दिया.
दिल के हाथों में हम कितने
मजबूर थे,
दिल के क़ातिल को ही दिलरुबा लिख दिया.
बुत परस्ती की ये इंतिहा देख लो,
हमने पत्थर को अपने ख़ुदा लिख दिया.
मुझको पढ़ते अगर तो कोई बात थी,
बिन पढ़े ही मेरा तब्सिरा लिख दिया.
डॉ. सुभाष भदौरिया
गुजरात ता.21-08-2017
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