ग़ज़ल
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पर ही मिल लीजिये.
फूल बन
कर के खिल लीजिये.
जान भी
देंगे फिर बाद में,
पहले
टूटा सा दिल लीजिये.
आँख से
सब समझ जायेंगे,
आप
होटों को सिल लीजिये.
रफ़्ता
रफ़्ता करीब आयेंगे,
चाहे
जितने उछल लीजिये.
ज़िन्दगी
तो संभलने को है,
आज
थोड़ा मचल लीजिये.
वो न
बदलेगा ज़ालिम कभी,
आप
अपने बदल लीजिये.
राहें
बदनाम हैं इश्क़ की,
तुम भी
चुपके निकल लीजिये.
डॉ.
सुभाष भदौरिया. गुजरात ता.29-09-2017
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