शनिवार, 30 सितंबर 2017

ट्रेन बुल्लट चलाने का वादा करें, पुल बनाने की जिनको न फ़ुर्सत मिली.

ग़ज़ल
ट्रेन बुल्लट चलाने का वादा करें, 
पुल बनाने की जिनको न फ़ुर्सत मिली.
हादसा हो कहीं भी मेरे मुल्क में, 
मुझको ऐसा लगे गाज़ मुझपे गिरी.

आइनो पे ना पत्थर उछालो बहुत, 
वक्त है साब इनकी हिफाज़त करो,
नोट बंदी से पहले परेशान थे, 
मर गये और जी.एस. टी है जब से लगी.

उड़ रहे आसमां उन्हें क्या ख़बर,
 कितने खड्डे जमी पर हुए आजकल,
जिनको लोगों ने बर्ख़ास्त था कर दिया ,
हमसे कहते हैं ढूँढ़े हैं हम नौकरी.

झूट का उसने सिक्का चलाया बहुत,
 चाँद हाथों में सबको दिखाया बहुत,
सच कहा जब भी हमने उसे प्यार से,
 क्या करें गर उसे है जो मिर्ची लगी.

दर्द होता है क्या पूछिये उनसे ये, 
झोंक दी उम्र परिवार के वास्ते,
ग़ैर होता तो सह लेते ये दर्द हम, 
अब तो घर के ही कहने लगे बाहरी.

शौक़ से झोपड़ीं तुम जलालो भले, 
आँधियां उठ रही हैं ये चारों तरफ,
आग पहुँचेगी महलों तलक देखना, 
आँख गर वक्त पर आपकी ना खुली.

इक गुलामी से हम दूसरी में फँसे,
 वो अँधरे ही बेहतर थे इस से भला,
इन उजालों को लेकर के हम क्या करें,
 छीन ली जिसने आँखों की सब रोशनी.

डॉ. सुभाष भदौरिया ता.30-09-2017 गुजरात.








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