गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

मोम से फिर पिघलने लगते हैं.

ग़ज़ल

मोम से फिर पिघलने लगते हैं.
और अरमां मचलने लगते हैं.

कौन देता है दस्तकें फिर से,
दिल के दरवाज़े जलने लगते हैं.

यादें जब तेरी घेर लेती हैं,
घर से बाहर निकलने लगते है.

और क्या तेरे ग़मगुसार करें,
जाम से फिर बहलने लगते हैं.

चाँद ख़्वाबों में मुस्कराता है,
फिर से करवट बदलने लगते हैं.

कौन थामें है हाथ अब किस का,
ख़ुद ही मैकश सँभलने लगते है.

डॉ.सुभाष भदौरिया गुजरात ता.21-12-2017



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