बुधवार, 6 दिसंबर 2017

जान देकर के शान रखते हैं.

ग़ज़ल
जान देकर के शान रखते हैं.
हम अजब आन बान रखते हैं.

शब्दभेदी हैं हमको पहिचानो,
दिल में तीरों कमान रखते हैं.

दोस्तों पे तो जां छिड़कते हैं,
दुश्मनों का भी मान रखते हैं.

वैसे तो हम जमी पे रहते हैं,
आँख में आसमान रखते हैं.

यूँ तो हम हर अदब से वाकिफ़ हैं,
हम भी मुँह में ज़बान रखते हैं.

डूब जाओगे उलझने वालों,
समन्दरों सा उफान रखते हैं.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.०६-१२-२०१७


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