रविवार, 28 जनवरी 2018

मैं जहां भी गया यादें भी तेरी साथ रहीं,

ग़ज़ल

दिल का ये ज़ख़्म है गहरा नहीं भरने वाला.
 तेरा शैदाई ये ज़ल्दी नहीं मरने  वाला.


मैं जहां भी गया यादें भी तेरी साथ रहीं,
ये नशा अब न मुहब्बत का उतरने वाला.


पास आये तो वो मौजों की रवानी समझे,
 दूर ही दूर समन्दर से गुज़रने वाला .


तू परेशान बहुत है तू परेशान न हो,
वो संग दिल है नहीं मोम पिघलने वाला.


है अभी वक्त तू , दो चार ही बातें कर ले,
ये मुसाफ़िर  नहीं ज़्यादा है ठहरने वाला.


आँधियां ले गयी किस ओर उड़ाकर उसको,
शान से बैठा था शाखों पे बिखरने वाला.



डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता. 28-01-2018

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें