गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

और क्या आग लगाओगे बताओ तो सही.

ग़ज़ल

और क्या आग लगाओगे बताओ तो सही.
फिर मुझे छोड़ के जाओगे बताओ तो सही.

आँसू बनकर कि जो उमड़ा मैं कभी आँखों में,
हँस के पलकों पे छिपाओगे बताओ तो सही.

हमसे बिछुड़े तो हमसा ना दुबारा पाया,
दास्तां अपनी सुनाओगे बताओ तो सही.

तुम सा प्यारा नहीं दुनियां में हमारा कोई,
झूट सर की कसम खाओगे बताओ तो सही.

आईना आप भी भूले से तो देखो साहब,
ऐब मेरे ही गिनाओगे बताओ तो सही.

घेर लेंगे जो अँधेरे तुम्हें तन्हाई के,
मेरी ग़ज़लों को क्या गाओगे बताओ तो सही.

डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात ता.01-02-2018

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