ग़ज़ल
अब पकोड़ों को बनाओ लोगो.
खुद भी खाओ व खिलाओ लोगो.
हाथ धर सर पे यूँ रोते
क्यों हो,
और सर हमको बिठाओ लोगो.
सीख लो चाय बनाने का हुनर,
बाद में सबको बनाओ लोगो.
आम चाहे हो बबूलों से तुम ,
होश अब यूँ ना
गंवाओ लोगो.
तुम अगर रोशनी के हामी हो,
मिल अँधेरों को भगाओ लोगो.
भेड़िये दूर तलक भागेंगे,
अब मशालों को जलाओ लोगो.
डॉ. सुभाष भदौरिया गुजरात
ता. 03-02-2018
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